
ओशो, जिन्हें भगवान रजनीश भी कहा जाता है, एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु थे। उनका जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में हुआ। उनका असली नाम चंद्र मोहन जैन था। ओशो ने जबलपुर विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और दर्शनशास्त्र में डिग्री ली। बाद में वे प्रोफेसर बने, लेकिन उनका मन पढ़ाने से ज्यादा लोगों को जागरूक करने में लगा।
ध्यान और नई सोच
1960 के दशक में ओशो ने प्रवचन शुरू किए। वे कहते थे कि असली धर्म मंदिर-मस्जिद में नहीं, बल्कि अपने मन को समझने में है। उन्होंने ‘डायनामिक मेडिटेशन’ नाम की एक नई विधि बनाई, जिसमें लोग नाचते, सांस लेते और अपनी भावनाओं को बाहर निकालते थे। ओशो का मानना था कि जीवन एक उत्सव है। उनकी किताबें, जैसे फ्रॉम सेक्स टू सुपरकॉन्शियसनेस, बहुत मशहूर हुईं, लेकिन कुछ लोगों को उनकी बातें पसंद नहीं आईं।
पुणे आश्रम और रजनीशपुरम
1970 में ओशो ने पुणे में एक आश्रम बनाया। वहां दुनिया भर से लोग उनके प्रवचन सुनने आते थे। 1980 में वे अमेरिका गए और ओरेगन में ‘रजनीशपुरम’ नाम की एक कम्यून शुरू की। लेकिन वहां कई विवाद हो गए। उन पर और उनके अनुयायियों पर गंभीर आरोप लगे, जैसे धोखाधड़ी और हिंसा। 1985 में ओशो को अमेरिका से निकाल दिया गया, और वे वापस भारत आए।
विवाद और आलोचना
ओशो को उनकी सोच और जीवनशैली के लिए आलोचना भी झेलनी पड़ी। वे रॉल्स-रॉयस कारों के शौकीन थे, जिसके कारण लोग उन्हें ‘रॉल्स-रॉयस गुरु’ कहते थे। उनकी खुली सोच और परंपराओं को तोड़ने वाली बातें सभी को पसंद नहीं आईं। फिर भी, उनके अनुयायी उन्हें बहुत प्यार करते थे।
विरासत और अंतिम समय
19 जनवरी 1990 को पुणे में ओशो का निधन हो गया। लेकिन उनकी शिक्षाएं आज भी जिंदा हैं। पुणे का उनका आश्रम, जो अब ‘ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिज़ॉर्ट’ कहलाता है, हर साल हजारों लोगों को आकर्षित करता है। ओशो ने सिखाया कि अपने मन को जानो और जिंदगी को खुलकर जियो।