वट सावित्री व्रत:

हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है. यह व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु, सुख और समृद्धि के लिए रखा जाता है. इस साल 27 मई, 2025 को ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि पर वट सावित्री व्रत मनाया जाएगा. इस दिन महिलाएं वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करेंगी और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनेंगी. खासकर उत्तर भारत और अवध क्षेत्र में इसे ‘बरगदाही’ के नाम से भी जाना जाता है.

क्या है वट सावित्री व्रत की मान्यता?
वट सावित्री व्रत की मान्यता देखा जाए तो सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा से जुड़ी है. कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस लाने के लिए कठिन तप और बुद्धिमानी का परिचय दिया था. बरगद के वृक्ष को दीर्घायु और अटलता का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इसकी पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से दांपत्य जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और पति पर आने वाली विपत्तियां टल जाती हैं.

पंचांग के अनुसार, वट सावित्री व्रत 27 मई, 2025 को मनाया जाएगा. यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को पड़ता है. इस दिन शनि जयंती भी मनाई जाएगी, जिससे इस तिथि का महत्व और बढ़ जाता है. पूजा का शुभ मुहूर्त स्थानीय पंचांग के आधार पर सुबह से दोपहर तक रहेगा.

ऐसे करें वट सावित्री की पूजा
व्रत के दिन महिलाएं सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनती हैं. बरगद के वृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है. वृक्ष को जल, रोली, अक्षत, फूल और धूप अर्पित किए जाते हैं. इसके बाद कच्चे सूत को वृक्ष के चारों ओर 7 बार लपेटा जाता है. सावित्री-सत्यवान की कथा सुनी जाती है और प्रसाद के रूप में फल, मिठाई और बांस की पंखुड़ी चढ़ाई जाती है. व्रत के अंत में महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं.

यह व्रत न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि दांपत्य जीवन में प्रेम और विश्वास को भी मजबूत करता है. महिलाएं इस दिन पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ व्रत रखकर अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं.